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आधुनिकता का आकाश व अपनी जड़ों का गौरव है-नई शिक्षा नीति 2020

प्रो. वासुदेव देवनानी पूर्व शिक्षा मंत्री., एवं विधायक, अजमेर उत्तर (राज.) 

हम 21वीं शताब्दी में जीवन जी रहे हैं। समय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए हमारी नई पीढ़ी को भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना होगा। इसी अनुरूप नई शिक्षा नीति बनाई गई है। इस नीति में समय व जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बालक के नर्सरी से लेकर महाविद्यालय तक की शिक्षा की रचना की गई है जिसमें शोध के द्वारा नई पीढ़ी की प्रतिभा का सृजन कर देश को आत्मनिर्भर बनाने तथा भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाने का संकल्प दिखाई देता है। अब तक की पूर्व की नीतियों में कहीं न कहीं मैकाले की शिक्षा की छाया दिखाई पड़ती है। केवल पाठ्यक्रम कंठस्थ कर डिग्री प्राप्त करना व उसके आधार पर नौकरी प्राप्त कर जीवनयापन करने तक सीमित है जबकि यह शिक्षा नीति जो 34 वर्ष बाद हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लाई गई है पूरी तरह से भारतीय जनमानस की भावनाओं, आकांक्षाओं व अपेक्षाओं की पूर्ति करने वाली है। इसके मूल में छात्र ‘क्या सोचे’ के स्थान पर कैसे सोचे’ पर जोर दिया गया है। उसमें विश्लेषण की क्षमता बढ़े इसको जोड़ा गया है क्योंकि आज कम्प्यूटर में डाउनलोड कर विषयवस्तु व सूचना सरलता से प्राप्त की जा सकती है, पर उस सूचना व जानकारी का विश्लेषण कर खोजी प्रवृति से आगे बढ़ना होगा इसके लिये शिक्षा में जड़ से जगत तक पहुँचने, पुरानी परम्पराओं व परिवेश को ध्यान में रखते हुए अतीत से आधुनिकीकरण की ओर जाना होगा जिससे ज्ञान शक्ति में भारत को प्राचीन तक्षशिला व नालंदा की तरह विश्व का सिरमौर बनने का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति के प्रारंभ में बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में देने का प्रावधान है जिससे बच्चे की ग्रहण करने की क्षमता बढ़ेगी। विश्व के कई देशों जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया आदि में प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने से श्रेष्ठ परिणाम आये हैं क्योंकि बच्चे जो भाषा घर में बोलते हैं उसी भाषा में प्रारंभिक शिक्षा देने से ग्राह्यता व समझ का पूरा विकास होता है। इसी दौरान अक्षर ज्ञान व गणना सरलता से सीख लेता है। इसीलिए 3 से 18 वर्ष तक की शिक्षा का विभाजन 5+3+3+4 में सर्वथा उचित लगता है। आंगनबाडी को प्रारंभिक शिक्षा में स्कूल के साथ जोड़ा गया है। इसमें बालक परिवेश से भी जुड़ा रहता है। राजस्थान में आंगनबाड़ियों को स्कूल से जोड़ने का प्रयोग सफल रहा है। छठी कक्षा से व्यावसायिक शिक्षा देने के दोहरे लाभ होंगे। एक उसमें सीखने की प्रवृति, सोचने का भाव, पारंपरिक व्यवसायों से लेकर वर्तमान प्रौद्योगिकी से जुड़े व्यवसायों से ज्ञान, परिश्रम व खोज का स्वभाव बनेगा। बारहवीं तक वह अन्य विषयों के साथ व्यावसायिक शिक्षा से 

आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ायेगा। इससे उसमें रुचि, योग्यता व आवश्यकतानुसार बढ़ेगी। इसमें उसका समाज के साथ जुड़ाव होगा व ऊँच-नीच व अन्य सामाजिक विकृतियों को 

दूर करने में मदद मिलेगी। इस नीति में भारतीय भाषाओं का संरक्षण व संवर्धन होगा। सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को भी जोड़ा गया है जिसमें छात्रों का भारतीय संस्कृति के साथ जुड़ाव होगा व नई पीढ़ी भारतीयता पर गर्व करेगी। नीति में उच्च शिक्षा की अलग-अलग व्यवस्थाओं के स्थान पर नियामक संस्थाओं का एकीकरण कर एक ही उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया गया है जिसके अन्तर्गत मानक सेटिंग, वित्त पोषण, मान्यता व विनयमन स्वतंत्र निकाय के रूप में होंगे। साथ ही देश के 500 विश्वविद्यालयों व 40,000 कॉलेजों का एकीकरण कर लगभग 15,000 बड़े बहुविषयक संस्थाओं में एकीकरण किया जाएगा जिसमें छात्रों को किसी एक संकाय के विषयों तक सीमित रखने के स्थान पर अलग-अलग रुचि के अनुसार विषय लेने की छूट दी गई है जैसे भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र के साथ संगीत भी लिया जा सकता है। जहाँ स्नातक शिक्षा को 4 वर्षों का बनाया गया है वहाँ प्रवेश व निकास की छुट दी गई है। साथ ही किसी भी समय ली गई शिक्षा बेकार नहीं जाएगी। कई बार छात्रों को बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ जाती है उसमें उनकी पूर्व की शिक्षा निरर्थक हो जाती है। इसमें एक वर्ष की शिक्षा पर सर्टीफिकेट, दो वर्ष पर डिप्लोमा, तीन वर्ष पर स्नातक व चार वर्ष पर स्नातक शोध की डिग्री देने का प्रावधान है साथ ही प्रत्येक विषय के क्रेडिट अंक तक है जो प्राप्त कर लेने के बाद आगे जुड़ जाते हैं। ऐसी विश्व के कई देशों में व्यवस्था है। 2030 तक हर जिले में कम से कम एक उच्च गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थान की स्थापना की जाएगी जिससे वंचित भौगोलिक क्षेत्रों के छात्रों को सुविधाएँ उपलब्ध होगी। नई शिक्षा नीति पूरी तरह से विद्यार्थी केन्द्रित है और इसका उद्देश्य ज्ञान केन्द्रित विश्व गुरु भारत की कल्पना को साकार करने पर जोर दिया गया है। इस हेतु पूरी नीति में अनुसंधान पर जोर दिया गया है। राष्ट्रीय अनुसंधान फाउण्डेशन बनाकर शोध की संस्कृति के विकास पर जोर दिया गया है। स्नातकोत्तर और डाक्टरेट शिक्षा को मूल अनुसधान के साथ जोड़ा गया है। नई नीति के अनुसार बारहवीं व स्नातक की शिक्षा से खोजपूर्ण मस्तिष्क आगे विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकता अनुसार नई खोज कर समाज के विकास में सहभागी बनेगा। इस नीति का दूसरा पहलू व्यावसायिक शिक्षा को उच्च शिक्षा प्रणाली को एक अभिन्न अंग के रूप में विकसित करना है। इस हेतु आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ काम करना होगा। इस क्रम में राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नालॉजी फोरम का गठन किया जाएगा। 

अभी सरकार द्वारा ऑनलाइन शिक्षा, वर्चुअल लैब, ई-पाठयक्रम आदि की भी व्यवस्था की गई है। इस हेतु आर्थिक आवश्यकता होगी जिसके लिये शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत व्यय करने का प्रावधान रखा गया है। वर्तमान में केवल 3.4 प्रतिशत ही व्यय हो रहा है। यह बहुत बड़ा निर्णय है यह सरकार की इच्छा शक्ति एवं शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस नीति में सभी विषयों में अनुसंधान की व्यवस्था होगी जिस हेतु इस दशक में बीस हजार करोड़ के वार्षिक अनुदान का प्रावधान, जो आज तक के इतिहास में सर्वाधिक है। इसमें भारत के प्रतिभाशाली छात्रों को अनुसांधान हेतु कोई वित्तीय कमी नहीं आएगी। इसमें प्रमुख चार भाग रखे गए हैं – विज्ञान, प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान, कला और मानविकी जिसमें सारे क्षेत्र ‘कवर’ हो जाते हैं। इसमें शोधकर्ताओं के शोध से उद्योगों को लाभ होगा व हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे। यह शिक्षा नीति हमारे ‘सपनो के भारत को साकार करते हुए भारत की गर्वित विरासत के साथ विकास, रुचि, क्षमता, मांग तथा भारत के अध्यात्म व आधुनिकता के संतुलन का मसौदा है जो स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, प्रोढ़ शिक्षा, शिक्षक शिक्षा, भारतीयता, कला व संस्कृति शिक्षा, मूल्य शिक्षा, ऑनलाइन व डिजीटल शिक्षा आदि को दूरगामी व नये ढंग से संबंधित करता है। नई शिक्षा नीति देश की भावी संतति के लिए उनकी वैयक्तिकता से लेकर संस्कारयुक्त वैश्विक चेतनाओं का रोड मैप है जिस पर चलकर भारतीय विद्यार्थी विश्व को नई दिशा देते हुए भारत को ज्ञान के क्षेत्र में विश्वशक्ति बनायेंगे। 

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