राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) रुक्टा का 60वां प्रांतीय अधिवेशन सम्पन्न
सीकर। राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) का 60वां प्रांतीय अधिवेशन 27 व 28 मार्च 2022 को सीकर में हुआ। अधिवेशन का आरम्भ संगठन के संस्थापक प्रो. सत्यदेव देराश्री की स्मृति में आयोजित व्याख्यान से हुआ, जिसके मुख्य वक्ता संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के निदेशक प्रो. चांद किरण सलूजा थे। प्रो. सलूजा ने नई शिक्षा नीति लागू किए जाने को आधुनिक भारत के इतिहास का एक क्रांतिकारी कदम बताया। प्रो. सलूजा ने कहा कि हमें ऐसी शिक्षा नहीं चाहिए, जो हमारे शाश्वत मूल्यों के अनुकूल न हो। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से अब हम एक ऐसे पवित्र वातावरण में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें हमारी आने वाली पीढ़ी को भारत-केंद्रित होकर सोचने व सीखने का अवसर मिलेगा। भारत की सनातन चिन्तन-परम्परा विश्व-कल्याण का संस्कार देने वाली परम्परा है। वर्तमान में विश्व जिस मार्ग पर जा रहा है, वह उसके कल्याण का मार्ग नहीं है। विश्व के कल्याण का मार्ग भारत से होकर ही जाता है। विश्व भारत-केंद्रित होकर सोचे, इससे लिए जरूरी है कि हम भारतवासी भारत-केन्द्रित होकर सोचें। आयोजन की अध्यक्षता करते हुए भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी श्री कन्हैया लाल बेरवाल ने कहा कि हमें अपने आचरण की शुचिता बनाए रखनी चाहिए, क्योंकि शिक्षा का मूल संस्कार भी आचरण की शुचिता बनाए रखना ही है। प्रारम्भ में संगठन के प्रदेश-महामंत्री डॉ. सुशील कुमार बिस्सु ने प्रो. सत्यदेव देराश्री के जीवन-चरित्र को रेखांकित किया। साथ ही उन्होंने सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. चांद किरण सलूजा व अध्यक्ष कन्हैया लाल बेरवाल का परिचय भी दिया। आभार-ज्ञापन संगठन के प्रदेश-अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार शर्मा ने किया।
उत्तम शिक्षा से ही राष्ट्र का निर्माण
अधिवेशन के उद्घाटन-सत्र के मुख्य अतिथि केन्द्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी थे, जबकि अध्यक्षता राज्य के पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने की। विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल थे। कैलाश चौधरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि केंद्र सरकार का मानना है कि उत्तम शिक्षा से ही राष्ट्र का निर्माण होता है, इसलिए वह नई शिक्षा-नीति लेकर आई है – जबकि राजस्थान की सरकार को शिक्षा की कोई चिन्ता नहीं है, इसलिए इससे सम्बद्ध विषयों में उसकी कोई उपलब्धि भी नहीं है। इसके विपरीत वह प्रदेश की शिक्षा-व्यवस्था को बिगाड़ने में लगी है। राज्य सरकार बिना संसाधनों के नए-नए महाविद्यालय खोलती जा रही है। बिना शिक्षकों की नियुक्ति व बिना समुचित वित्तीय प्रावधानों के नए-नए शिक्षण-संस्थान खोलने से हजारों विद्यार्थियों का भविष्य चौपट हो रहा है। उन्होंने कहा कि रुक्टा-राष्ट्रीय की अपेक्षाओं के अनुरूप केंद्र सरकार राज्य की शिक्षा-व्यवस्था में सुधार हेतु अपनी ओर से पूरा सहयोग देने के लिए तैयार है। अध्यक्षता करते हुए प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा कि सरकार की अदूरदर्शिता और सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की भूख के कारण राज्य की उच्च शिक्षा का ढाँचा बुरी तरह चरमराया गया है। प्रो. देवनानी का विचार था कि राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा ‘रीट’ में हुए भ्रष्टाचार से पता चलता है कि सरकार युवाओं के सपनों को कुचलने पर आमादा है।
राष्ट्र की सेवा करते रहें
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल ने संगठन की रीति-नीति पर प्रकाश डालते हुए प्रतिभागियों का आह्वान किया कि वे उदात्त भावना से सक्रिय रहते हुए राष्ट्र की सेवा करते रहें। उन्होंने विश्वास दिलाया कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से केंद्र सरकार के साथ दृढता से चलते हुए देश के शिक्षा-ढाँचे में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के लिए हमारा संगठन कृतसंकल्पित है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार शर्मा ने संगठन की ओर से आयोजित किए जाने वाले नियमित कार्यक्रमों जैसे कर्त्तव्य-बोध-दिवस, गुरुवंदन-उत्सव, नवसंवत्सर-उत्सव आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा संगठन शिक्षक-समुदाय की माँगों की पूर्ति व समस्याओं के समाधान के प्रति जागरूक तो है ही, वह अपने सदस्यों के रचनात्मक उन्नयन के प्रति भी संवेदनशील है। प्रदेश-महामंत्री डॉ.
सुशील कुमार बिस्सु ने राज्य की शिक्षा-व्यवस्था की विसंगतियों को उजागर करते हुए कहा कि सरकार का सहयोगी रवैया न होने के बावजूद संगठन ने अपनी सक्रियता के चलते उस पर दबाव बनाकर राह में आ रही अनेक बाधाओं को पार किया है। उन्होंने कहा कि न तो यह सरकार करियर एडवांसमेंट स्कीम के अंतर्गत लाभान्वित होने वाले शिक्षकों की कोई चिंता कर रही है और न ही उसे इस बात की चिंता है कि प्राचार्यों, पुस्तकालयाध्यक्षों, खेल-अधिकारियों व मंत्रालयिक कर्मचारियों के बिना राज्य के महाविद्यालय कैसे चलेंगे? यही नहीं, बड़ी संख्या में नए महाविद्यालय खोलकर सरकार ने शिक्षकों का संकट और बढ़ा दिया है। सत्र के प्रारम्भ में अधिवेशन के आयोजन-सचिव डॉ. अशोक महला ने आगन्तुक अतिथियों व प्रतिभागियों का स्वागत किया। अंत में आयोजन-सह-सचिव डॉ. रोहित बेरवाल ने सभी का आभार प्रकट किया। उद्घाटन-सत्र का संचालन जयपुर सम्भाग के संगठन मंत्री डॉ. सुरेन्द्र सोनी ने किया। उद्घाटन-सत्र में ही अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय शोध-पत्र लेखन प्रतियोगिता में भाग लेकर श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने वाले राज्य के शिक्षक प्रतियोगियों डॉ. सीमा मंगल, डॉ. राजेश जोशी, डॉ. महिपाल बुरडक, डॉ. राजेश जांगिड़ और डॉ.ओम प्रकाश पारीक को सम्मानित किया गया।
राजस्थान की लोक-संस्कृति की छटा देखने को मिली
संगठन के प्रदेश-अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार शर्मा की अध्यक्षता में साधारण-सभा का खुला सत्र आयोजित हुआ, जिसमें दायित्त्ववान कार्यकर्ताओं ने विभिन्न महाविद्यालयों की स्थानीय इकाइयों द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों का वाचन किया। अनेक साथियों ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आ रहे दोषों व उन्हें दूर करने के लिए संगठन की भूमिका से जुड़े विषयों की चर्चा की। सत्र में साधारण सभा की ओर से समाज, शिक्षा व शिक्षकों की माँगों और समस्याओं से सम्बन्धित तीन प्रस्ताव पारित किए गए। सत्र में संगठन के प्रदेश-महामंत्री डॉ. सुशील कुमार बिस्सु ने अपना वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। विगत व वर्तमान अधिवेशन के मध्य की कालावधि में दिवंगत हुए शिक्षक साथियों को श्रद्धांजलि देने के साथ ही खुला सत्र समाप्त हो गया।
संध्याकाल में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर के दक्ष कलाकारों ने मोहक प्रस्तुतियाँ दीं। प्रस्तुतियों में राजस्थान की लोक-संस्कृति की अद्भुत छटा देखने को मिली।
अधिवेशन के दूसरे दिन का आरम्भ ‘स्वतन्त्रता-आन्दोलन में शिक्षा व शिक्षक की भूमिका’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी से हुआ, जिसके मुख्य वक्ता राजस्थान विश्वविद्यालय में कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. नन्दकिशोर पांडे थे। प्रो. पांडे ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत का स्वतन्त्रता-संघर्ष पूर्णतया गुरु-परम्परा पर आधारित है। प्राचीन काल से ही हमारे गुरु इस बात के लिए सचेत रहे हैं कि नई पीढ़ी को स्वराज व स्वशासन का अर्थ अच्छी तरह समझ में आ जाना चाहिए, ताकि वह सुराज व सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करके आगे बढ़ती रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व क्षेत्र कार्यवाह और क्षेत्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हनुमानसिंहजी राठौड़ ने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि राष्ट्र के निर्माण में शिक्षकों ने हमें सनातन नेतृत्त्व प्रदान किया है, जिसके कारण हम न केवल स्वशासित हुए, बल्कि सुशासित होने की ओर भी बढ़ रहे हैं। हनुमानसिंहजी ने कहा कि अकादमिक दृष्टि से भारत के स्वत्व का विमर्श होना जरूरी है और रुक्टा-राष्ट्रीय जैसे ऊर्जावान संगठन यह कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं।
संगोष्ठी में डॉ. सुरेन्द्र सोनी, डॉ. मनोज बहरवाल, डॉ. गीताराम शर्मा, डॉ. हरिसिंह राजपुरोहित, डॉ. राजेश जोशी, डॉ. सरोज कुमार, डॉ. कर्मवीर चौधरी और डॉ वीना सैनी ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। संचालन डॉ. ओमप्रकाश पारीक ने किया।
सच्चा शिक्षक वहीं जो युवाओं का मार्गदर्शन करें
भोजनोपरान्त समापन-सत्र सम्पन्न हुआ, जिसके मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम थे, जबकि अध्यक्षता अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेन्द्रजी कपूर ने की। अपने उद्बोधन में निम्बाराम ने कहा कि सच्चा शिक्षक वही है, जो नित्य नूतन व चिर पुरातन के राष्ट्रीय दर्शन को समझते हुए देश व दुनिया के युवाओं का समुचित मार्गदर्शन करे। उन्होंने कहा कि हमें स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर जाना है। पिचहत्तर वर्ष पूर्व हमें जो स्वाधीनता मिली, उसमें समाज के सभी वर्गों का योगदान था। उस समय जिन हुतात्माओं ने राष्ट्र के लिए अपने आप को होम दिया, उनके मन में एक स्वतन्त्र और समरस भारत की कल्पना थी। हमें इस कल्पना को साकार करना होगा और इसके लिए पाठ्यक्रमों की पुनर्रचना करनी आवश्यक है, क्योंकि अब तक अपने पाठ्यक्रमों में धरातल पर कठोर संघर्ष करने वाले तपस्वी जनों व त्यागमूर्ति वीर-वीरांगनाओं को यथोचित स्थान नहीं मिला है। अध्यक्षता करते हुए श्री महेन्द्रजी कपूर ने कहा कि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ भारत के वास्तविक सांस्कृतिक स्वरूप का उद्घाटन करने व स्वतंत्रता संघर्ष के मूल चिन्तन को लोक तक पहुँचाने के लिए रचित कार्यक्रमों की एक शृंखला के साथ आगे बढ़ रहा है और राष्ट्रीय धारा के शिक्षक इस कार्य में समर्पण-भाव से लगे हुए हैं। सत्र का संचालन डॉ. शिवशरण कौशिक ने किया।
दो दिन के अधिवेशन में प्रदेश भर से 850 शिक्षकों ने भाग लिया।