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प्रत्येक भारतीय में अपनी संस्कृति के प्रति स्वाभिमान का भाव जाग्रत हो

भारतीय कालगणना की वैज्ञानिकता विषय पर व्याख्यान

बांसवाड़ा। वर्ष प्रतिपदा के उपलक्ष्य और नवसंवत्सर के स्वागत में श्री गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा में भारतीय कालगणना की वैज्ञानिकता विषय पर व्याख्यान कार्यक्रम हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) की श्री गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा इकाई के तत्त्वावधान में ए समारोह का प्रारंभ माँ शारदे के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया। मुख्य वक्ता महाविद्यालय के संस्कृत के सह आचार्य डॉ. राजेश जोशी ने “वैदिक काल-गणना और उसका विज्ञान” विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारतीय ऋषियों ने हजारों साल पहले खगोल के महान रहस्यों को बिना आधुनिक संसाधनों के खोज लिया। वैदिक समय की संसार को यह अनुपम भेंट है। विक्रम संवत्सर सूर्य और चन्द्रमा दोनों की युगपत गति पर निर्मित है, जो सार्वभौमिक सन्दर्भ प्रस्तुत करता है। भारतीय तिथियों की उत्पत्ति और समाप्ति विश्व के हर स्थान और समय में वही रहती है, बदलती नहीं है जबकि अन्य कलेंडर में त्योहार और पर्वों की तिथियों में स्थान और समय भेद प्रायः देखा जाता है। यहाँ के महिनों के नाम नक्षत्रों की पूर्णिमा पर आधारित हैं जबकि ईस्वी सन् के जुलाई और अगस्त के नाम के पीछे रोमन सम्राटों के नाम जुडे हुए हैं। डॉ. जोशी ने कहा कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही सतयुग प्रारम्भ हुआ था इसलिए शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष प्रारंभ होता है।
प्रारंभ में विषय प्रतिपादन करते हुए प्राणीशास्त्र के सहायक आचार्य प्रकाश किंकोड ने युगाब्द को स्पष्ट किया। उन्होंने चारों युगों का काल निर्धारण व अवधि के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही उन्होंने भारतीय पंचांग की तुलना पाश्चात्य कैलेंडर से करते हुए भारतीय पंचांग के महत्त्व को स्पष्ट किया और सभी से यह आह्वान किया कि वे अपना जन्मदिन भारतीय तिथि के अनुसार ही मनाएं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. भूपेन्द्र कुमार शर्मा ने की। उन्होंने उपस्थित संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों के आरोग्य और कल्याण की कामना करते हुए नव संवत्सर २०७९ की शुभकामनाएं दी। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ. राजेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि जब तक प्रत्येक भारतीय में अपनी संस्कृति के प्रति स्वाभिमान का भाव जाग्रत नहीं होगा, तब तक भारत विश्वगुरु नहीं बन सकता। संचालन इकाई सचिव डॉ. लक्ष्मण सरगडा ने किया।

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