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प्राथमिक शिक्षकों की भूमिका विषयक गोष्ठी का आयोजन

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तर प्रदेश व समाज विज्ञान संकाय संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्राथमिक शिक्षकों की भूमिका विषयक गोष्ठी का आयोजन संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनि सभागार में हुआ। कार्यक्रम के आरंभ में माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन मुख्य अतिथि राष्ट्रीय प्रभारी शैक्षिक प्रकोष्ठ “प्रो शैलेश जी”, प्रो उदयन, डॉ सुशील के द्वारा किया गया। अतिथियों का स्वागत व विषय प्रवर्तन शशांक पाण्डेय के द्वारा किया गया। शशांक पाण्डेय ने कहां कि, प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में शिक्षा व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु शिक्षक या गुरु रहा है, जिसके बिना जीवन का अर्थ समझ पाना संभव नहीं है। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वह अज्ञान के अंधकार को हटाता है।

मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता प्रो शैलेश ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में अध्यापक की शिक्षा गुणवत्ता, भर्ती, पदस्थापना, सेवा शर्तें और शिक्षकों के अधिकारों की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर बल दिया गया है। जिसके फलस्वरूप चरित्र-निर्माण भी होता है। इस का परिणाम ये होगा कि बच्चे एक सभ्य नागरिक बनेंगे। प्रो शैलेश ने प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अपनी कक्षा में विद्यार्थियों के सामाजिक, भावनात्मक, बौद्धिक, शारीरिक और नैतिक मूल्यों का विकास करते हैं। डॉ सुशील ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों की रचनात्मकता बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का केंद्र बिन्दु बहुविषयकता और समग्र शिक्षा है। प्रो नरेंद्र राय ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कक्षा 5 तक शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा या स्थानीय भाषा के उपयोग पर जोर दिया गया है। जबकि कक्षा 8 और उसके बाद तक इसे जारी रखने की सिफारिश की गई है। यह नीति कहती है कि सभी छात्र अपने स्कूल में तीन भाषाएं सीखेंगे। बच्चों द्वारा सीखी गई तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों विशेष से जुड़ी होंगी। प्रो राय ने कहा कि मातृभाषा वह भाषा है जो हम जन्‍म के साथ सीखते हैं। जहां हम पैदा होते हैं, वहां बोली जाने वाली भाषा खुद ही सीख जाते हैं। आसान भाषा में समझें तो जो भाषा हम जन्‍म के बाद सबसे पहले सीखते हैं, उसे ही अपनी मातृभाषा मानते हैं। किसी भी बच्चे को यदि उसकी मातृभाषा में शिक्षा दिया जाय तो बच्चे को सीखने में आसानी होगी। वह विषय को आसानी से समझ सकेगा। शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करना सरल होगा। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो उदयन ने कहा कि शिक्षा का शाब्दिक अर्थ “सीखने एवं सिखाने” की क्रिया से होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में 5+3+3+4 डिजाइन के साथ शिक्षाशास्त्र सहित पाठ्यक्रम में परिवर्तन, वर्तमान परीक्षाओं और मूल्यांकन प्रणाली में सुधार के दृष्टिकोण से जुड़े हैं। कार्यक्रम का संचालन आनंद सिंह ने व धन्यवाद ज्ञापन रमा रूखैयार ने किया। इस अवसर पर जिला महामंत्री आनंद कुमार सिंह, जिला कोषाध्यक्ष डा० दिनेश चंद, कार्यकारी जिलाध्यक्ष ज्योतिप्रकाश, संयुक्त महामंत्री आशुतोष पाण्डेय, जिला उपाध्यक्ष आशा पाठक, दीपिका सिंह, अनुराधा भार्गव, अनुराधा सिंह,ऋतु ओबराय,निशि सिंह,नितिशा पाण्डेय,कुमुद सिंह,डा० प्रभाकर द्विवेदी, संजीव त्रिपाठी, प्रशांत मोहन गिरी,सुधारानी,प्रीति सिंह,अजय सिंह,संजय गुप्ता आदि उपस्थित रहे।

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