अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का 8वां राष्ट्रीय अधिवेशन
बेंगलुरु/चन्नेनहल्ली। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का 8वां राष्ट्रीय अधिवेशन चन्ननहल्ली स्थित जनसेवा शिक्षा संस्थान के प्रांगण में प्रारंभ हुआ। प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. चांद किरण सलूजा ने ‘भारतीय सामाजिक दृष्टि’ विषय पर संबाोधित किया। अध्यक्षता महारानी क्लस्टर विश्वविद्यालय बेंगलुरु की कुलपति प्रो. गोमती देवी ने की।
मुख्य वक्ता प्रो. चांद किरण सलूजा ने समाज को अपने तरीके से परिभाषित करते हुए विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में शिक्षा का अर्थ भाषा अर्थात संवाद है। भारत का समाज सहजीवी है, जो एक साथ जीने की बात करता है और वह व्यक्ति को सत्य के लक्षणों का दर्शन कराता है। कला भारतीय समाज का मूल आधार है। समाज व्यक्ति व परिवार के प्रशिक्षण की आधारशिला है। वेदों और उपनिषदों में भी समाज व्यवस्था का विस्तार से वर्णन मिलता है।
1996 के गठित अंतराष्ट्रीय शिक्षा आयोग, जिसमें शिक्षा के चार स्तंभ देखने को मिलते हैं। ज्ञान प्राप्ति के लिए शिक्षा, कार्य हेतु शिक्षा, एक साथ रहने हेतु शिक्षा और मनुष्य बनने हेतु शिक्षा पर गहराई से प्रकाश डालकर नवीनतम उदाहरणों से स्पष्ट किया। भगवद् गीता के अनुसार संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। भारत का दर्शन, ज्ञान का फैलाव, ज्ञान की तीव्र इच्छा की जागृति और निरंतर अध्ययनरत होना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा को पहले जानो, फिर चिंतन करो, मनन करो और फिर व्यवहार में लाएं तो सच्चे अर्थों में लाभ होता है।
महाभारत के पांच पांडवों की तुलना मनुष्य की पांच इंद्रियों से और सौ कौरवों की तुलना सैकड़ों इच्छाओं से की है । कृष्ण की तुलना मस्तिष्क से की है। और अंत में जीत मस्तिष्क की ही होती है। अर्थात जीत कृष्ण की ही होती है। भारत हमेशा सभी के कल्याण की बात करता है। उन्होंने संगीत व शोर के माध्यम से जीवन की महत्ता बताई और कहा कि भारतीय समाज जीवन को संगीत बनाने की बात करता है।
भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में श्रेष्ठ : प्रो. गोमती देवी
अध्यक्षीय उद्बोधन में महारानी क्लस्टर विश्वविद्यालय बेंगलुरु की प्रो. गोमती देवी ने बताया कि हमारे समाज में माता-पिता का स्थान देवता के समान है। उन्होंने समाज में अनुशासन अपनाने की बात कही और भारतीय संस्कृति की महत्ता बताई और कहा कि पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति ही श्रेष्ठ है। आज संत कनदासजी की जयंती की जानकारी देते हुए कहा कि हमें जाति और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सोचना चाहिए। उच्च शिक्षण संस्थानों की समाज में विशेष भूमिका पर प्रकाश डाला। संचालन महासंघ की सचिव प्रो. गीता भट्ट ने किया। उन्होंने आगंतकों का धन्यवाद भी ज्ञापित किया।
द्वितीय सत्र में संगठनात्मक विषयों पर हुई चर्चा
द्वितीय सत्र संवर्ग सह बैठकों का रहा जिसमें संगठनात्मक विषयों पर चर्चा हुई। इस अवसर पर शैक्षिक महासंघ का झंडा भी फहराया गया।
महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री शिवानंद शिंदन केरा ने बताया कि 8वां राष्ट्रीय अधिवेशन 11, 12 और 13 नवंबर को बेंगलुरु में आयोजित हो रहा है। अधिवेशन के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, विशिष्ट अतिथि केंद्रीय संसदीय कार्य एवं खान मंत्री प्रहलाद जोशी, अतिथि सिंचाई एवं जल मंत्री कर्नाटक गोविंद करजोल, नगरीय विकास मंत्री कर्नाटकबै राठी बसवराज थे।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जे पी सिंघल, मुख्य वक्ता प्रो. सुनील भाई मेहता अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वागताध्यक्ष केसी राममूर्ति, पूर्व राज्य सभा सदस्य, स्वागत समिति महामंत्री अरुण शाहपुर पूर्व एमएलसी, महासंघ के संगठन मंत्री महेंद्र कपूर, सहसंगठन मंत्री जी. लक्ष्मणजी, आतिथेय संदीप बुधयालजी एवं कार्यक्रम संयोजक रघु एकमांची, अध्यक्ष कर्नाटक राज्य महाविद्यालय शिक्षक संघ रहे।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ(एबीआरएसएम) केजी से पीजी तक शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाला देश का एक अनूठा संगठन है। संगठन शैक्षिक उन्नयन हेतु समय-समय पर विभिन्न समसामयिक विषयों पर सेमिनार, संगोष्ठी, कार्यशाला और अधिवेशन आयोजित करता रहा है।
अधिवेशन में देशभर के 28 राज्यों के 450 जिलों से प्रत्येक जिले से अपेक्षित 6 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। लगभग 3000 प्रतिभागी 150 विश्वविद्यालयों सहित महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के कार्यकर्ता इस राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लिया।