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शिक्षा में आज भारतीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत : डॉ. सतीश पूनिया

राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) का 59वां प्रांतीय अधिवेशन संपन्न

जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष और आमेर विधायक डॉ. सतीश पूनिया ने कहा कि आज हमें शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। साथ ही समाज में आज शिक्षक के सम्मान को पुन:स्थापित किया जाना चाहिए।  डॉ. सतीश पूनिया जयपुर में आयोजित राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) के 59वें प्रांतीय अधिवेशन के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर अतिथियों ने ‘भारतीय ज्ञान-परंपरा और वाम-प्रलाप’ विषयक पुस्तक तथा राम जन्म भूमि तीर्थ विषयक कलैण्डर का विमोचन भी किया। अधिवेशन का शुभारंभ मां सरस्वती तथा भारत माता के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन तथा सरस्वती वंदना के साथ हुआ।

​मुख्य अतिथि पूनिया ने स्वर्गीय डॉ. पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी जी के उच्च शिक्षा और संगठन में किए गए कार्यों और उनके आदर्शों को स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि प्रकट की। उन्होंने उच्च शिक्षा में नवीन महाविद्यालयों की वित्तीय संसाधनों के अभाव में हो रही खराब स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रदेश सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व की शिक्षा का आधार ज्ञानात्मक हो रहा है। विस्तार की दृष्टि से हम विश्व के तीसरे स्थान पर हैं किंतु हमें आजादी के 75 वर्षों में भी गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुलभ नहीं हुई क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था मैकाले प्रणाली का शिकार रही। मैकाले की शिक्षा पद्धति में पूर्व सरकारों ने कोई बदलाव करना भी उचित नहीं समझा। डॉ पूनिया ने कहा कि आपातकालीन स्थिति ने भारत के लोगों में लोकतंत्र के महत्त्व को तथा राम जन्म भूमि आंदोलन ने भारत में राष्ट्रवाद व राम की महत्ता को स्थापित किया। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय विचार की शिक्षा नीति को पहली बार क्रियान्वित किया है। रूक्टा राष्ट्रीय की कार्यशैली तथा विचार पद्धति को इस दिशा में सकारात्मक बताते हुए उन्होंने रेखांकित किया कि ‘एक अच्छा संगठन, स्वस्थ संगठन हर प्रश्न का सशक्त उत्तर है’। रूक्टा (राष्ट्रीय) उच्च शिक्षा में वैचारिक अभियान के साथ राष्ट्र निर्माण में और शिक्षा तथा शिक्षकों की समस्याओं के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि बुनियादी मुद्दों के वैचारिक समाधान वर्तमान भारत सरकार ने किए हैं।

व्यवस्था परिवर्तन में शिक्षकों की महती भूमिका : महेन्द्र कपूर

प्रांतीय अधिवेशन में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि शैक्षिक महासंघ की स्थापना का उद्देश्य समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण है। व्यवस्था परिवर्तन में शिक्षक की महती भूमिका होती है। उन्होंने चाणक्य का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षक के रूप में संकल्पित होकर उन्होंने अराजक व्यवस्था को उखाड़ फेंका था। शिक्षक कम संसाधनों में भी अपना कार्य करता रहा है। आज हमारी उच्च शिक्षा में शोध की स्थिति चिंताजनक है। शिक्षक स्वयं समाज की आवश्यकताओं और समस्याओं के समाधान के लिए कार्य करता है।

सभी तरह की शिक्षा में महासंघ प्रभाव बढ़ा

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जे.पी. सिंघल ने बताया कि रूक्टा (राष्ट्रीय) राष्ट्रीय वैचारिक अधिष्ठान को लेकर चलने वाला शिक्षक संगठन है जो अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ से सम्बद्ध है। शैक्षिक महासंघ 10 लाख शिक्षक सदस्यों के साथ राष्ट्र का प्रथम शिक्षक संघ है। राष्ट्र के हित में शिक्षा, शिक्षा के हित में शिक्षक व शिक्षक हित में समाज ही महासंघ का ध्येय वाक्य है। हम इसी उद्देश्य से कर्तव्य- बोध, शाश्वत जीवन मूल्य, सामाजिक समरसता, गुरु-वंदन आदि कार्यक्रम करते हैं। इसी के साथ महासंघ शिक्षकों की सेवाशर्तों में सुधार के लिए भी कार्य करता है। महासंघ का प्रभाव आज प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में भी बढ़ा है।

शिक्षा का राजनीतिकरण लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ : डॉ. गुप्ता

रूक्टा (राष्ट्रीय) के महामंत्री डॉ. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि शिक्षा में विचार, मातृभाषा तथा राष्ट्र भावना के समावेश में पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अब वे हमारे मध्य नहीं है। इसीलिए स्मृति स्वरूप अधिवेशन सभागार का नाम डॉ. पुरुषोत्तम लाल चतुर्वेदी के नाम पर रखा गया है। उन्होंने धारणीय विकास में शिक्षा की अवधारणा पर वर्तमान भारत की उभरती स्थिति को रेखांकित किया।
डॉ. नारायण लाल ने कहा कि शिक्षा का राजनीतिकरण लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है जो वर्तमान सरकार कर रही है। नवीन खोले गए महाविद्यालयों को किसी प्रकार का वित्तीय अनुदान जारी नहीं किया जबकि अमेरिका जैसे देश विकसित इसलिए हैं क्योंकि उनके पास श्रेष्ठ उच्च शिक्षा संस्थान हैं। सस्ती लोकप्रियता के कारण लगातार संसाधनहीन महाविद्यालय खोले जा रहे हैं, जबकि उनके पास न शिक्षक हैं और न ही भवन है। विश्वविद्यालयों में अधिकांश प्रोफेसर्स के पद रिक्त पड़े हैं। कॉलेज शिक्षा में भय का वातावरण बना हुआ है।
अधिवेशन के संयोजक तथा रूक्टा (राष्ट्रीय) के संगठन मंत्री डॉ. दीपक कुमार शर्मा ने आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। समापन पर वंदे मातरम् हुआ। डॉ सीमा सक्सेना तथा डॉ वंदना खुराना ने सरस्वती वंदना तथा वंदे मातरम् प्रस्तुत किया। डॉ मनोज कुमार शर्मा ने उद्घाटन समारोह का संचालन किया ।

शिक्षक समस्याओं की ओर दिलाया ध्यान

उद्घाटन सत्र के बाद अधिवेशन में खुला सत्र व साधारण सभा का सत्र आयोजित हुआ जिसमें महामंत्री प्रतिवेदन प्रस्तुत कर वर्ष भर में किए गये कार्यों का लेखाजोखा प्रस्तुत किया। संगठन का वार्षिक आय व्यय लेखा डा. राजीव सक्सेना ने प्रस्तुत किया। खुले सत्र में प्रतिनिधियों ने शिक्षक समस्याओं की ओर संगठन का ध्यान आकर्षित किया ।
इस अवसर पर तीन प्रस्ताव भी पारित किए-
1. राम मंदिर से राष्ट्र-मन्दिर की ओर।
2. राज्य में उच्च शिक्षा के चरमराते ढांचे को अविलंब दुरूस्त किया जाए
3. राज्य की उच्च शिक्षा में कार्यरत शिक्षकों की समस्याओं का समाधान प्राथमिकता से किया जाए पारित किए गए।
साधारण सभा द्वारा आगामी दो वर्षों के लिए मनोनीत कार्यकारिणी का भी अनुमोदन किया। आगामी दो वर्ष के लिए अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार शर्मा, महामंत्री डॉ. सुशील कुमार बिस्सु और संगठन मंत्री डॉ. दिग्विजय सिंह शेखावत को मनोनीत किया गया। अंत में गत अधिवेशन के पश्चात प्रभुतत्व में लीन शिक्षक साथियों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धाजंलि दी गई।

राम हमारे राष्ट्र के जीवन्त प्रतीक और जन-जन के हृदयवासी : निम्बाराम

समापन सत्र में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने अपने उद्बोधन में कहा कि राम भारत के राष्ट्रीय देवपुरुष हैं। राम से भारत के सांस्कृतिक स्वरूप का प्रकटीकरण होता है। राम-सगुण व निर्गुण दोनों श्रेणियों के-भारतवासियों के मानस में स्थापित आदिदेव हैं। राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, इसलिए देश के लोगों ने अयोध्या को एक तीर्थ के रूप में देखा है। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीयों का आत्मविश्वास खण्डित करने के लिए उनके देवालयों को निशाना बनाया। इसी क्रम में आक्रांता बाबर के समय यहाँ के हिन्दू समाज की आस्था के केंद्र अयोध्या में स्थित भगवान राम का मन्दिर को तोड़ा। तब से ही देश के लोग राम-मन्दिर की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे। अंग्रेजों के चले जाने के बाद राम-मन्दिर की पुनर्स्थापना के लिए हो रहे बलिदानों का सिलसिला रुकना चाहिए था, लेकिन वोटों की राजनीति के चलते देश के स्वाभाविक धर्म पर गहरे आघात होते रहे। भारत की महान् जनता, जिसके हृदय में राम विराजे हैं, आजाद भारत में भी व्यावस्थालयों व न्यायालयों में देश व धर्म के सम्मान की रक्षा के लिए निरन्तर जूझती रही। ईश्वर की कृपा से अब वह समय आया है, जब अयोध्या से गुलामी के चिह्न पूरी तरह नष्ट होंगे व रामजी का भव्य मन्दिर बनेगा। वस्तुतः यह राष्ट्र-मन्दिर होगा, क्योंकि राम – मर्यादा-सर्वोत्तम होने के नाते – हमारे राष्ट्र के जीवन्त प्रतीक हैं और जन-जन के हृदय के वासी हैं। भारत में ही नहीं, भारतेतर देशों में भी उनकी महान् प्रतिष्ठा है। यह जो मन्दिर बन रहा है, इसे देखने वाली पीढ़ी निश्चय ही बड़ी भाग्यवान है। भारत का हर वर्ग इस मन्दिर को दिव्य व भव्य देखना चाहता है – इसलिए अयोध्या आस्था एवं कला का एक ऐसा केंद्र बनेगा, जिससे – हजारों वर्षों तक – भारत व दुनिया की आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा ले सकेंगीं।

कोरोना की परिस्थितियों के चलते इस बार का अधिवेशन प्रतिनिधि सम्मेलन के रूप में आयोजित किया गया। अधिवेशन में राज्य के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।